काकरिहो भइया , जब उतर जायी पानी ।।
एक बार पानी उतर जब जावै ।
कोनेउ जतन से दोबारा न आवै ।।
कहते हैं बड़े-बड़े बुध जन ज्ञानी ॥
काकरिहो भइया , जब उतर जायी पानी ।।
पानी कुछ और नहीं पानी स्वाभिमान है ।
पानी ही आन-मान पानी ही शान है ।।
यही गौरव गरिमा की अपनी निशानी ।।
काकरिहो भइया , जब उतर जायी पानी
और कुछ खोये तो दोबारा मिल जाये ।
खोया स्वाभिमान तो दोबारा न आये ।।
माटी के मोल होवे प्यारी जिन्दगानी ।
काकरिहो भइया , जब उतर जायी पानी ।।
पूछे प्रताप जी से बात एक छोटी ।
राज सुख छोड़ खाये घास की रोटी ।।
खोटा न शान किया खोया न पानी ।
काकरिहो भइया , जब उतर जायी पानी ।।
देश के सपूतों उन शहीदों से पूछो ।
देश भक्त उन रण बॉकरों से पूछो ।।
सब सुख छोड़ दे दी हंस हंस कुर्बानी ।
काकरिहो भइया , जब उतर जायी पानी ।।
केवल जो रूपयों का देखतें है सपना।
रुपया ही सगा जिसका और नहीं अपना ।।
ऐसे नर पामर ही बढ़ावें परेशानी ।
काकरिहो भइया , जब उतर जायी पानी ।।
स्वाभिमान की सुगंध जीवन में जिनके ।
पूजनीय वहीं जिनका संसार महके ।।
इतिहास सुगो तक है कहता कहानी ।
काकरिहो भइया , जब उतर जायी पानी ।।
स्वाभिमान बेच धन से भरे जो कोठरिया ।
मौज करिह लरिके उनकी होगी दुर्गतिया ।।
धन लिये अपना जो गंवाय देत पानी ।।
काकरिहो भइया , जब उतर जायी पानी ।।
क्षणिक सुख लाभ में न भूलिये मीत रे ।
हरिराम की बात याद रखो मीत रे ।।
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