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दिल के कलम से लिखना है

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मन मेरे तू बन जा  कागज 
कुछ दिल के कलम से लिखना है 
हम उनके खातिर है जिंदा
और उनके खातिर मिटना है

मै बार बार हर एक बार बस तेरी आंखें तकता हूं
कैसे बतलाओं  आंखो की गहराई आखिर कितना है
मन मेरे तू बन जा कागज 
कुछ दिल की कलम से लिखना है

हर रोज रात अक्सर सवार
मै गीतों पर हो जाता हूं
उनकी यादों का सूनापन
और तन्हाई में खो जाता हूं
उनकी बातो की ठंडक कुछ 
चंदा सा शीतल जितना हैं
मन मेरे तू बन जा  कागज 
कुछ दिल की क़लम से लिखना है

मेरे हर सांस की धारा पर 
अब पहरा तेरा बनता है
दर्पण में रूप निहारू तो 
बस चेहरा तेरा दिखता है
कैसे बतलाए हम उनको
कि चाहत उनसे कितना है
मन मेरे तू बन जा कागज 
कुछ दिल की कलम से लिखना है

वो कहते है हर रोज मुझे 
तुम रखना अपना ध्यान जरा
इतनी क्यों पीड़ा सहते हो
रखो तुम अपना ख्याल जरा
अब कैसे उनको बतलाए 
उनसे ही सब कुछ कितना है
मन मेरा तू बन जा कागज 
कुछ दिल के कलम से लिखना है 🖉


लेखक,निर्देशक:-अजित पाठक 

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