भ्रष्टाचार की आग में ,जलता आज समाज ।
सभ्य समाज कैसे कहें कहत में लागे लाज ।।
कहत मैं लागे लाज अस्मिता माँ बहिनों की ।
लुटती है हर गली कहानी हर घर-घर की ।।
हरीराम कहें इसके आगे सभी आज लाचार ।
महा कराल पिशाच भंयकर दुःखप्रद भ्रष्टाचार ।।
(2)
लूट मची चहुँ ओर है, मचा है हाहाकार ।
नही सुरक्षित है कहीं सभी हुये लाचार ।।
सभी हुये लाचार सशंकित है सब ही जन ।
निर्भयता है नही किसी मैं छाया भय सबके मन II
हरीराम कहें घुटन सभी में पीते कड़वा घुट ।
कैसे रहे सुरक्षित कोई जहाँ हो ऐसी लूट ।।
(3)
ठेंगा देखो दिखा रहे घूमत है निर्दृर्द ।
नियम न माने माफिया है बिल्कुल स्वच्छन्द ।।
है बिल्कुल स्वच्छन्द नियम न माने कोई ।
नही किसी का डर कुछ माने करे जो मन में होई ।।
हरीराम कहें होके संगठित इन्हे दिखाओ ठेंगा ।
नही तो सब दिन तुम्हें दिखाते रहेगे ऐसे ठेंगा ।।
(4)
खुल्लम खुल्ला हो रहा भ्रष्टाचार का नाच ।
सभी देखते जानते तनिक न लागै लाज ।।
तनिक न लागै लाज बवाल क्यों सिर पर पालैं ।
जाँच समिति करगठित बला निजसिर से टालैं ।।
हरीराम कहै चाहे जितना कर लो हल्ला ।
सदाचार बिन चलेगा ऐसे खुल्लम खुल्ला ।।
(साहित्यकार-श्री हरीराम )
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